१५ अगस्त - स्वतंत्रता दिवस का गौरवमयी इतिहास - समझाविश बाबू

 हमारे देश का ७४वां स्वतंत्रता दिवस आ रहा है ,स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का गौरवमयी इतिहास  रहा है जो न केवल सीख देती है अपितु अत्यंत प्रेणादायक रही है। अनेको कुर्बानिया और लम्बे संघर्ष के बाद हमे ये आजादी मिली है। अपना देश अनेको भाषाओं और धर्मो का देश रहा है और है भी ,यही इसकी एकता की सबसे बड़ा मिशाल है कि इन विविधताओं के बाद भी राष्ट्र के नाम पर हम एक हैं। राष्ट्रीयता अर्थात् राष्ट्र भक्ति  किसी एक धर्म या समूह की  जागीर नहीं है।


 यह प्रत्येक नागरिक का है और सभी का कर्तव्य है कि वह इस तथ्य को निर्विवाद रूप से स्वीकार करे कि सभी के लिए राष्ट्र धर्म -राष्ट्र भक्ति पहले है फिर कुछ और।किसी भी राष्ट्र के स्वस्थ विकास के लिए यह तर्क सकारत्मक नहीं है कि किसकी राष्ट्र भक्ति सर्वश्रेष्ठ है ,राष्ट्र भक्ति निर्विवाद और निस्वार्थ एवं निश्छल होना चाहिए। 

                          स्वतंत्रता पाने के लिए वर्षों से संघर्ष चलता रहा किन्तु जो सही अर्थों में प्रथम बार अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया वह था वह था १८५७ का विद्रोह ,जिसमे मंगल पांडेय द्वारा कलकत्ता के निकट बैरकपुर छावनी में किया गया विद्रोह सबसे महत्वपूर्ण घटना तत्कालिक समय की बनी  ,जिसे प्रथम संघर्ष के रूप में भी जाना गया। उस समय यह अफवाह थी की १८५३ की राइफल के कारतूस की खोल पर सूअर और गाय की चर्बी का प्रयोग किया जा रहा है ,जिसे लेकर अत्यंत आक्रोश पनप रहा था ,आक्रोश तो हर परतंत्र व्यक्ति के भीतर पनपता है सिवाय देशद्रोहियों को छोड़कर। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी व्यक्ति वो हो जाता है जो विरोध का साहस करता है ,इसीलिए मंगल पांडेय का नाम अमर हो गया और रहेगा। इस विरोध को  अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह कुचला गया। अंग्रेज लगातार हो रहे विरोधों को दमनकारी और घृणित तरीके से कुचलती रही।इनके घृणित कारनामो में सबसे काला अध्याय जलियांवाला बाग नरसंहार था। रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निकट स्थित जलियांवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ को एक सभा हो रही थी ,जहाँ जनरल डायर नामक एक अंग्रेज अफसर ने गोलियां चलवा दी थी जिसमे लगभग ४०० से अधिक व्यक्ति मारे गए थे और २००० से अधिक घायल हुए थे कुछ लोगों का अनुमान इससे अधिक मारे जाने का भी है ,जो सत्य भी हो सकता है क्यूंकि जो नादिरशाही और जघन्यता अंग्रेजी हुकूमत दिखा रही थी उसमे सब संभव था।

                पूर्व में मोहनदास करमचंद गाँधी के नाम से जाने-जाने वाले महात्मा गाँधी ने जो  १९१७ के चम्पारण आंदोलन में नील की खेती के विरोध में शुरू किया गया था ,यहीं से उन्हे महात्मा गाँधी कहा जाने लगा ,सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत भी यहीं से हुआ। हांलाकि इस आंदोलन की जिद्द करने वाले और जो सूत्रधार थे जिन्हे राजकुमार शुक्ला के नाम से जाना जाता है उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। अंग्रेजों का जो तुगलकी फरमान था की हर बीघे के तीन कट्ठे जमीन में नील की खेती अनिवार्य रूप से करना है और इसके लिए बड़े जुल्म ढाये जा रहे थे। इस आंदोलन में स्वतः भीड़ एकत्रित हो गयी ,जहाँ गांधीजी को जिला छोड़ने को कहा गया ,किन्तु गांधीजी नहीं डिगे ,दूसरे दिन उन्हे कोर्ट में प्रस्तुत किया गया जहाँ भीड़ के अतिउत्साह को देखते हुए मजिस्ट्रेट को बिना जमानत गांधीजी को छोड़ना पड़ा। यहीं से गांधीजी ने लोगों को सत्याग्रह का मूल मंत्र समझाना शुरू किया जिसका अर्थ था ''डर से स्वतंत्रता ''। 

                                 इधर जब महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह आंदोलन कुछ समय के लिए स्थगित  किया  ,इसी मध्य हमारे  देश में कुछ ऐसे वीर सपूत हुए जो अपनी युवा अवस्था को न देखते हुए अपनी प्राणो कीआहुति देश की स्वतंत्रता के लिए हँसते  -हँसते दे दिया। अपने क्रांतिकारी आंदोलन के लिए धन की पूर्ति के लिए सरकारी खजाना लूटने के लिए काकोरी में जो ट्रेन  रोककर अंजाम दिया गया था यह घटना ९ अगस्त १९२५ को हुआ था जिसमे १० महीने मुकदमा चलने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल ,राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ,रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह को फाँसी की सजा दी गयी थी,और ये चारो आजादी के मतवाले हँसते-हँसते फाँसी पर झूल गए। राम प्रसाद बिस्मिल के कहे हुए वाक्य आज भी जब गुनगुनाये जाते हैं ''सर फरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ,देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ''तो भुजाएं फड़क उठती है और एक जूनून देश के प्रति छा जाता है। इसी प्रकार भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,राजगुरु का भी नाम भी  आता है जिन्होने अपनी जीवन देश के लिए कुर्बान कर दिया। चंद्रशेखर आजाद कितने जिगरे वाले थे की अंग्रेजों के हाथ जिन्दा न पकड़े जाएँ इसलिए स्वयं को गोली मारकर अपने प्राणो की आहुति दे दी   थी। क्रूर जनरल डायर से जिस  साहस के साथ  उधम सिंह ने बदला लिया वो भी कम क्रांतिकारी कदम नहीं था। अभी बहुत से ऐसे नाम हैं जिसका उल्लेख नहीं किया जा रहा है ,या फिर अनेको ऐसे भी बलिदानी रहे होंगे जिनका नाम भी नहीं आया होगा ,लेकिन उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है।इसके अतरिक्त एक बड़ा नाम है जिनका उल्लेख यदि न  किया जाये तो लिखना सार्थक नहीं होगा ,वह नाम है नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जिनका नारा अत्यंत प्रसिद्ध हुआ था ''तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा ''। इन सभी के प्रयास को भी कम कर के नहीं आँका जा सकता है। 

                           आज मेरा आजादी पर लिखने का खास मकसद ये है की ७४ वर्ष आजादी के होने जा रहे हैं ,हम क्या कुछ महान क्रन्तिकारी योद्धाओं  को भूलते जा रहे हैं ,उनकी जयन्तियों पर केवल कुछलोग औपचरिकता निभा देते हैं ,यही उनके बलिदान की सच्ची श्रद्धांजलि है। महात्मा गाँधी की तुलना किसी से नहीं की जा सकती और उनका योगदान सर्वोपरि है। किन्तु हमे ये भी आज सोचना होगा कि जिन  क्रांतिकारियों ने अपने युवा अवस्था में अपने जीवन को न्योछावर कर दिया या फिर वो जो अपनी मृत्यु कि बिलकुल परवाह नहीं किये उन्हे क्या भुला जा सकता है। यह तथ्य स्वयं पर रख कर सोचा जा सकता है कि अपनी जान कि बाजी लगाना कितना कठिन होता है ,यही कारण है कि आज हम लोग सीमा पर मुस्तैदी से खड़े सैनिक जब अपना बलिदान देते हैं और शहीद होते हैं तो हमारा मन श्रद्धा से भर जाता है और उन्हे हम दिल से पूजते हैं। क्यूंकि देश के लिए जान कि कुर्बानी लगा देना मामूली बात नहीं है। इसी प्रकार से आज हमे उनके योगदान को कम करके आंकना ठीक नहीं हम  सभी का परम कर्त्तव्य है कि  उनको भी उनके जयंती पर पूरे देश में सम्मानपूर्वक याद किया जाये और यह भी देखने का विषय है कि उनके परिवार के जो भी सदस्य जीवित हैं वो किस हाल में हैं। इनके जीवन से बहुत कुछ सकारात्मक चीज़ सीखी जा सकती है ,राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह दोनों ही उच्च श्रेणी के शायर व कवि थे उनकी रचनाएँ न केवल आजादी के संघर्ष के लिए प्रेरणादायक थे बल्कि इतने जोशीले थे कि पड़ने या सुनने के बाद भुजाएं फड़क उठती थी। यहाँ सबसे बड़ी बात है कि दोनों आपस में परम मित्र थे और उनकी मित्रिता का मिशाल दिया जाता था और दोनों हँसते-हँसते फांसी के फंदे पर झूल गए ,उन्होने  एकता की जो मिसाल पेश किया और जाति-धर्म से ऊपर उठ कर देश को सर्वोपरि मान कर जो अपनी प्राणो की आहुति दी आज के समय में अनुकरण करने वाली सच्ची मिसाल है। राष्ट्रभक्ति इनसे सीखना चाहिए जो सदैव चर्चा का विषय बना रहता है। 

                                  आइये आज आजादी का पर्व पुनः आया है इनको भी सच्चे मन से याद करें और इनके भी गीत गायें  और इनके द्वारा जो संदेश दिया गया है उसे जीवन में अपनाने का प्रयास करें 

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                               हम चाहे किसी जाति या मजहब के हों 

                               हमारे पहनावे चाहे कितने ही अलग क्यों न हो 

                               हमारे त्यौहार भी क्यों न अलग-अलग हो 

                               पर जज्बा देश के लिए सबका एक है 

                               यही हमारे देश का गौरव भी है 

                               यही हमारे देश की पहचान है 

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                                अमन के लिए जीते है ,अमन के लिए ही मरते हैं 

                                सदियों से जरूर हमें रौंदा गया 

                                पर हमारा ये सन्देश अजर रहा अमर रहा 

                                लेकिन ये हमारी कमजोरी अब न रही 

                                अब न हमे कोई रौंद पायेगा 

                                जो कोई हिमाकत भी करना चाहेगा 

                                एक नहीं सौ बार मिटटी में मिल जायेगा 

                                       जय हिन्द जय भारत ।। 

टिप्पणियाँ

  1. आज का दिन सबसे बड़ा पर्व है हर भारतीय के लिये

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  2. जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है
    बसेरा वो भारत देश है मेरा

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  3. है प्रीत जहां की रीति सदा
    में गीत वहां के गाता हूँ
    भारत का रहने वाला हुँ
    भारत की बात सुनाता हूँ

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  4. देश मेरे देश मेरे मेरी जान है तू ��
    Happy Independence Day 2020 : दिल हमारे एक हैं एक ही है हमारी जान . . . दिल हमारे एक हैं एक ही है हमारी जान, हिंदुस्तान हमारा है हम हैं इसकी शान, जान लुटा देंगे वतन पे हो जायेंगे कुर्बान, इसलिए हम कहते हैं मेरा भारत महान। सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  5. आज के दिन तो फुल वोल्यूम में देश भक्ति गीतों का आनंद पूरे परिवार के साथ हर सच्चा भारतीय अवश्य लेता है।
    जय हिन्द।

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