सिविल सेवा ----लोक सेवक पार्ट ---२ - समझाविश बाबू
पूर्व के लेख में वी आई पी कल्चर का उल्लेख किया था ,वास्तव में होता ये है क़ि कोई भी बाहर का अधिकारी या शासन का जनप्रतिनिधी किसी जिले या तहसील में जाकर डाकबंगला /सर्किट हाउस में रुकता है तो उनके भोजन आदि क़ि व्यवस्था उनके विभाग या फिर संबन्धित तहसील क़ि होती है जहाँ राजस्व विभाग इसकी व्यवस्था करता है, ये सामान्य सी बात है की कोई भी कर्मचारी अपने वेतन से तो करेगा नहीं येन-केन प्रकारेण कोई अन्य विधि निकालेगा जो भ्रष्टाचार को जन्म देती है। इसी प्रकार जिले के इन विभागों के अधिकारीयों क़ि व्यवस्था भी होती है।
ये अधिकारी अपना जैसे इसे जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं ,ज्यादातर यही होता है कि इनके परिवार में किसी ने कोई फरमाइश क़ि तो अधीनस्थ को फ़ोन घूमाने लगता है और उनके द्वारा इसकी पूर्ती की जाती है ,जिले में ज्यादातर परजीवी क़ि तरह ही जीने क़ि आदत हो जाती है ,यही कारण है कि बना के भेजे जाते हैं लोक सेवक और बनजाते हैं शासक।
बड़े जिलों में तो दिनवार राजस्व विभाग के कर्मचारिओं की ड्यूटी लगती है ,जहाँ वो इस प्रकार की ड्यूटी अपनी निभाते हैं। ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और ये बदस्तूर जारी है। जब आप किसी से भी ऐसे काम लेंगे तो ईमानदारी की आशा कैसे कर सकते हैं , बल्कि उसी का आड़ लेकर और दो-चार काम ऐसे कर लेगा जिसमे भ्रस्टाचार की बू आएगी।
आखिर इस तरह के अधिकारीयों को क्या ये नहीं पता होता है कि वेतन ही उनके खर्चे का आधार है ,फिर ये पैरासाइट क्यों बने रहते हैं ? ये ज्यादातर अपने काम जिसमे धन इन्वॉल्व होता है उसे अपने अधीनस्थ से ही कराने का प्रयास करते हैं।
यदि इसको प्रभावी ढंग से समाप्त करना है तो एक निश्चित बजट का प्रावधान किया जाये और इसकी मॉनिटरिंग भी की जाये की जिले का कोई भी अधिकारी किसी भी अधीनस्थ से अपनी व्यवस्था न कराये और अधीनस्थ को भी सख्त आदेश रहे की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं करेगा, और जो करेगा वो दंड का भागी होगा। बिना बजट के प्राविधान के इसे ख़त्म किया जाना संभव नहीं है ,इसे समाप्त किया जाना अति आवश्यक है क्यूंकि इसका आड़ लेकर कोई भ्रष्टाचार की कोशिस न करे। इसके अलावा ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित होना चाहिए की ये अधिकारी अपने को लोक सेवक समझे न कि शासक। राजस्व विभाग में सुधार कई बिंदुओं पर अब परम आवश्यक हो गया है जो शासन कि सुचिता बनाने के लिए अत्यावश्यक हो गया है। अब मात्र कहने नहीं कुछ ठोस कदम उठा कर सुधार करने से होगा ,अन्यथा जो जैसा चल रहा चलता रहेगा आने वाला समय ख़राब ही आता जायेगा।



आज कल सब एक जैसे है जिसकोजहां भी मौका मिलता है वहाँ लूटते है।
जवाब देंहटाएंभष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत है
जवाब देंहटाएंAaj kal sab jagah corruption faila hua hai
जवाब देंहटाएं100 प्रतिशत सच है
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