''पावर'' - समझाविश बाबू [BLOG]
पावर यानि शक्ति ये हर युग में बहुत ही कमाल की चीज रही है और रहेगी। बस फर्क इतना है की यदि पावर+विवेक+बुद्धि का साथ में इस्तेमाल करें तो युधिस्टिर बन जाये ,और यदि पावर सर चढ़ कर बोले तो दुर्योधन बन जाये।
हिटलर ,मुसोलिनी,जनरल याहिया ये सब पावर सर पर चढ़ने के उदहारण हैं। महात्मा गाँधी,विवेकानंद,अटल बिहारी वाजपेई ने सही इस्तमाल किया ,वर्तमान में देखा जाये तो एक चीज का परीक्षण आप सभी कर सकते हैं ,जब एक साधारण नेता सबसे मिलता है तो कितनी विनम्रता रहती है,वही जब सत्ता में आ जाता है तो सारे रंग-ढंग बदल जाते हैं ,लगता ही नहीं है की ये वही महाशय हैं जो पहले मिला करते थे ,एक साधारण सा व्यक्ति पावर मिलते ही आश्चर्य जनक ढंग से बदल जाता है और पता नहीं कौन सा पारष मणि पा जाता है की उसकी दशा और दिशा दोनों बदल जाता है।चाल-ढाल सभी बदल जाता है।आगे-पीछे गाड़ियों का काफिला जय जैकार करते लोग ,ये सारी चीजें दिमाग को सातवें आस्मां पर पहुंचा देती है ,उन्हे लगता ही नहीं की कभी वो सत्ता से विमुख भी होंगे ,इसमे भी कुछलोग ऐसे होते हैं जो पावर के बाद भी अपनी विनम्रता नहीं छोड़ते इन्ही की सत्ता से विमुख होने के बाद भी सम्मान बना रहता है। इसी प्रकार प्रशासन में देखिये ज्यादातर लोग साधारण परिवार से नौकरी में आते हैं ,और पद पाते ही इनके हात भी पाराशमणि लग जाता है,धीरे-धीरे इनकी भी दशा और दिशा दोनों बदलने लगती है 'साइकिल की जगह लक्ज़रीएस गाड़ी ,बंगला जाने क्या-क्या सामान आने लगता है,लेकिन ये बड़े होशियार होते हैं यदि इनसे कोई पूछ ले की अरे भाई गाड़ी कब लिया तो बड़े मासूमियत से जवाब होगा क्या करें साला नहीं माना उसी ने दिलवा दिया मैं कहाँ ले सकता था। ज्यादातर के साले बहुत ही गुडवान और धनवान होते हैं भले ही धन इन्ही के द्वारा गोपनीय ढंग से ट्रांसफर किया गया हो।और ऐसे अधिकारी ये भी चाहते हैं की उनके अधीनस्थ अधिकारी उनके हर जरूरतों को येन-केन प्रकारेण पूरा करते रहें ,यदि नहीं करते हैं तो उनकी निगाह तिरछी ही रहती है। यही स्वच्छ प्रशासन में दीमक का काम करता है ,और प्रशासन का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जाता है। कुछ प्रशासनिक अधिकारी तो राजशाही के तरह व्यवहार करते हैं जैसे की वही भाग्य विधाता हैं। यही कारण हैं की आज धीरे -धीरे प्रशासन की हनक गिरती जा रही है और जरूरतमंद जनता ऑफिस के चक्कर पर चक्कर लगता रहता हैऔर फिर भी कई बार मायुश ही लौटता है। अब समय आ गया है ऐसे मोटी चमड़ी वाले लोगों की सर्जरी करने की इन्हे ये बताने की अब सुधर जाओ ,चाहे कितना भी कठोर कदम उठाना पड़े, उठाना चाहिए। अन्यथा ये यही गाना गाते रहेंगे की ''बारह महीने में बारह वर्ष में भी नहीं सुधरेंगे हम,अब बिना मलाई के रह नहीं पाएंगे हम ,ढिंका चिका -----ऐ ऐ ऐ''अब वक्त है ऐसे अधिकारी और राजनेता ये कहते घूमे की ''अच्छा कहो चाहे बुरा कहो झूठा कहो चाहे सच्चा कहो हमसे भूल हो गयी हमका माफ़ी देइ दो ''। इन्ही लोगों की वजह से गरीब जनता दर-दर भटकती है और ये अपनी ऐश की दुनिया में मस्त रहते हैं । इनके अंदर एक खूबी और रहती है की ये गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलने में माहिर होते हैं ,ये अपने उच्च अधिकारीयों और आकाओं के सामने अपने को ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे इनसे बड़ियाँ और जनता का हितैषी कोई अधिकारी हो ही नहीं सकता और हमेशा मलाईदार पदों पर बने रहते हैं। हम सबको इन्तजार रहेगा की इनका ऑपरेशन कब शुरु होता है कहीं बहुत देर न हो जाये और इनके लिए भी कोरोना वायरस की तरह वैक्सीन खोजना पड़े |



Very true
जवाब देंहटाएंdhanyavaad
हटाएंGajab ��
जवाब देंहटाएंdhanyavaad
हटाएंBilkul such likha hai ��
जवाब देंहटाएंdhanyavaad
हटाएंBahut khoob ��
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख
जवाब देंहटाएंSundar vichaar
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