"कहाँ से लाऊँ विदुर "


आज के वर्तमान परिस्थिति में जो राजनीत की दुर्दशा हुई है उसे देखते हुए रामायणकाल और महाभारतकाल की याद बरबस आ जाती है। राजनीत का अर्थ होता है की शासक राज्य के हित को सर्वोपरि मानकर जनता के भलाइओं  को दृश्टिगत मानते हुए जो नीति अपनाये वही राजनीत है,इसमे शासक का व्यक्तिगत हित नहीं होना चाहिए। लेकिन हो क्या रहा है परिभाषा बदल गयी है ,अब हो गया है ''शासक अपनी कुर्सी और सत्ता को बचाने के लिए येन केन प्रकारेण जो भी नीति  अपना लें वही राजनीत बन गयी है ''। ये न सच्चे अर्थो में न तो राजनीति  है न कुटनीत है ये कुछ और ही है।




इसे शब्दों से नवाजा भी नहीं जा सकता। इसलिए इसे साइलेंट रखना उचित होगा। महाभारत काल में देखिये एक विदुर ऐसे मंत्री थे जो धृतराष्ट,शकुनि,दुर्योधन,दुशासन,जैसे के साथ रहते हुए भी जहाँ भीष्मपितामह ,द्र्रोण,कृपाचार्य,जैसे महान लोगों के रहते हुए भी राज्यनीत की सदैव बात किया था अंत में अपना पद भी त्याग दिया था।आज तो संभव ही नहीं है।आज तो अजब-गजब है समझ में ही नहीं आता कौन सही कह रहा है कौन झूठ। कोई घटना घटित होती है तो तुरंत ही टी वी पर डीबेट सुरु हो जाता है और सभी दलों के साथ एक्सपर्ट भी बैठ जाते हैं। फिर जो विहंगम दृश्य देखने को मिलती है वो सीरियल से भी रोचक होता है कभी-कभी तो लगता है की भारत चीन लड़े या न लड़े कहीं टी वी पर ही न युद्ध हो जाये और यहीं हार-जीत का फैसला हो जाये। जो एंकर होते हैं या होती हैं वो बखूबी कटैलिसीस की भूमिका निभाती हैं और कई बार तो क्या राजनीत मानवता भी शर्मशार हो जाती है  सभी दल चाहे कोई घटना हो ऐसा तू तू मै मै करते हैं लगता ही नहीं की आधुनिक समाज के आधुनिक लोग हैं। अगर यही नकारत्मक ऊर्जा सार्थकता में लगाते तो शायद तस्वीर कुछ और होती। जहाँ भीष्मपितामह ,द्रोणाचार्य ,कृपाचार्य ,जैसे लोगों के मौन रहते हुए भी विदुर न केवल देश धर्म निभाया अपितु अपने पद को त्यागने का साहस भी किआ।
 उसकाल में भी युद्ध के दौरान भी इतनी नैतिकता बची थी की लोग एक दुसरे के खेमे में आ जा सकते थे। आज हम बहुत आधुनिक हो गए हैं ,लालटेन का स्थान एल इ डी बल्ब ने ले लिया ,घर का स्थान मकान ,फ्लैट ,बंगलो ने ले लिया। साइकिल का स्थान स्कूटर ,मोटरसाइकिल,कार,हवाईजहाज,ने ले लिया। हमारे भावनावों को व्यक्त करने वाले माध्यम पोस्टकार्ड,अंतर्देशीय ,लिफाफा,की जगह एस एम एस ,व्हाट्सप,फेसबुक, ट्विटर ,इंस्टाग्राम न जाने क्या -क्या ने ले लिया।संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार ने ले लिया। मेरा सिर्फ कहने का तात्पर्य मात्र इतना है सब कुछ प्रगति हो गया लेकिन दो चीजें एक नैतिकता और एक ईमानदारी उसी तरह विलुप्त होते जा रहे हैं जैसे की राजनीत में विदुर। हमारी राजनीति तो ऐसी होती जा रही है की कोई घटना घटित होती है तो सकारात्मक बहस जो जनता के भी पल्ले पड़े और जनता का हित हो वो न होकर कुछ और ही होता है ,जैसे की बच्चे रोज जिद करते हैं की आज हम ये खेल खेलेंगे ,उसी तरह राजनीती  हो गई हैकि आज कोरोना-कोरोना खेलें। आज चाइना-चाइना खेलें।आज विकाश-विकाश खेलें  परिणाम सिफर। अगर आप सही विरोध करने की माद्दा रखते हैं तो आप के अंदर भी पाकसाफ़ता होनी चाहिए  और उसका कुछ परिणाम निकलना चाहिए। 
           अंत में यही कहना चाहता हूँ की मै स्वयं ईमानदार नहीं हूँ पर मेरी ये चाहत है की पूरा देश ईमानदार हो जाये। मै अपने दिल में मैल लिए सबका दिल साफ़ करने का ठेका लेना चाहता हूँ। 

टिप्पणियाँ

  1. भारत में चाणक्य से पूर्व कई महान नीतिज्ञ हुए। भीष्म नीति, विदुर नीति, मनु नीति (मनुस्मृति), चर्वाक, शुक्र नीति, बृहस्पति नीति, परशुराम नीति, गर्ग नीति आदि अनेकों नीतिज्ञ हुए हैं। चाणक्य के बाद भी कई महान नीतिज्ञ हुए हैं जैसे भर्तृहरि, हर्षवर्धन, बाणभट्ट आदि। विदुर धृतराष्ट्र के सौतेले भाई थे जो एक दासी के पुत्र थे।
    विदुर नीति के अंतर्गत नीति सिद्धांतों का सुंदर वर्णन किया गया है। युद्ध के अनंतर विदुर पांडवों के भी मंत्री हुए। हिन्दी नीति काव्य पर विदुर के कथनों एवं सिद्धांतों का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

    विदुर-नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है। युद्ध के पूर्व महाराजा धृतराष्ट्र अपने सलाहकार विदुर को बुलाकर अच्छे और बुरे के बारे में चर्चा करते हैं। महर्षि वेदव्यास रचित ‘महाभारत’ के उद्योग पर्व में इस चर्चा का वर्णन मिलता है। यह संपूर्ण पर्व इस प्रकार है, जो ‘विदुर नीति’ के नाम से विख्यात है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट